परिचय

बुधवार, 18 मार्च 2015

बच्चे अब बड़े हो रहे हैं





मैंने-
छुपाकर रख दिया है
वो पैन!
जिससे कभी
प्रेम-पत्र लिखा था
फाड़ डाली
वो डायरी!
जिसमें कभी-
सूखा गुलाब रखा था
और-
जला डालीं
वो रंगीन किताबें!
जिन्हें कभी
छुप-छुपकर पढ़ा था।
मैं नहीं चाहता-
फिर से दोहरा जाये
वही पुराना इतिहास
जो कभी-
मैंने रचा था।

2 टिप्‍पणियां:

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विनोद पाराशर ने कहा…

धन्यवाद!
आपको मेरी कविताएँ पसंद आती हैं।