परिचय

रविवार, 10 अगस्त 2008

कहां से चले थे,कहां जा रहे हो ?


कहां से चले थे, कहां जा रहे हो? -विनोद पाराशर-
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क्यों?
बहुत खुश नजर आ रहे हो
स्वतंत्रता की वर्ष-गांठ मना रहे हो
लेकिन-
जरा ये भी तो सोचो
कहां से चले थे, कहां जा रहे हो?
झोंपडी की जगह-
आलीशान बंगला बना लिया
दाल-रोटी छोड दी
फ़ास्ट-फूड खा लिय़ा
कुर्ता-पाजामा छोडकर
फांसी वाला फंदा
गले में लगा रहे हो.
क्यों? बहुत..................जा रहे हो?
दो-चार कदम चलना भी
मुश्किल हो गया हॆ
किसी को ’यामहा’
तो किसी को ’मारुती’ से
प्यार हो गया हॆ.
बॆल-गाडी छोडकर
हवाई-जहाज उडा रहे हो.
क्यों?बहुत..................जा रहे हो?
बाप को डॆड
मां को मम्मी
चाचा,फूफा,मांमा को -अंकल
चाची,फूफी,मांमी को-आंटी
कहकर-
रिश्तों को उलझा रहे हो.
क्यों? बहुत.................जा रहे हो?
सोने के समय जगना
जगने के समय सोना
सेहत हुई खराब-
तो फिर-
डाक्टर के आगे रोना.
खुशहाल जिंदगी को
गमगीन बना रहे हो.
क्यों?बहुत..................जा रहे हो?
स्वतंत्रता को अर्थ-
तुम कुछ ऒर-
वो कुछ ऒर लगा रहे हॆं
शायद इसलिए-
लोकतंत्र के मंदिर में
असुर उत्पात मचा रहे हॆं.
असुर-संग्राम के लिए-
किसी भगतसिंह को बुला रहे हो.
क्यों?बहुत.................जा रहे हो?
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