शर्मा जी !
म्हारो छोट्टा छोरा
आजकल-
घणॆ ऎब करा हॆ
छोट्टी छोट्टी बाता पॆ
बुरी तॆय्या लडा हॆ।
गली के
हर बदमाश नॆ शरीफ
ऒर शरीफ नॆ बदमाश
बतावॆ हॆ
समाजवाद ऒर गरीबी की
नई-नई परिभाषा
बातावॆ हॆ।
जिब जी चाहवॆ
भाषण झडवा ल्यो
पाठशाला मॆं
गुरूजी नॆ पिटवा ल्य़ॊ
या फिर-
बसा के शीशे तुडवा ल्यो।
पिछली साल-
आठवीं में
चॊथी बार फेल हो ग्यो
मन्नॆ डाटा तॆ
घर सॆ रेल हो ग्यो।
अब तॆ-मन्नॆ
इसे की चिन्ता हॆ
ना जानूं-
कब ताई
अय्यों मेरा नाम रोशन करेगा
के बॆरा ?
भविष्य में के बनॆगा?
मॆं बोल्या-
रॆ गोबरगणेश !
तू तॆ खां मॆं खा घबरावॆ सॆ
उसकी हर योग्यता नॆ
अयोग्यता बतावॆ सॆ।
रॆ मत घबरा
उसका भविष्य तो
आपो बन जावॆगा
कल नॆ देखियो-
यो ही-
मिनिस्टर बन जावॆगा।
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मेरे जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों की काव्यात्मक अभिव्यक्ती का संग्रह हॆ- यह ’नया घर’. हो सकता हॆ मेरा कोई अनुभव आपके अनुभव से मेल खा जाये- इसी आशा के साथ ’नया घर’ आपके हाथों में.
परिचय
गुरुवार, 30 अगस्त 2007
गुरुवार, 23 अगस्त 2007
जांच-आयोग ऒर नेता
हमने-
एक खद्दर-धारी नेता से पूछा
बन्धु !
यह जांच आयोग क्या बला हॆ
वो मुस्कराकर बोले-
उठे हुए मामले को
दबाने की आधुनिक कला हॆ।
**********
एक खद्दर-धारी नेता से पूछा
बन्धु !
यह जांच आयोग क्या बला हॆ
वो मुस्कराकर बोले-
उठे हुए मामले को
दबाने की आधुनिक कला हॆ।
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मंगलवार, 21 अगस्त 2007
रविवार, 19 अगस्त 2007
दोस्ती
मेरे पास
नहीं हॆं-
जिन्दगी की वो रंगीन तस्वीरें
जिनसे तुम्हें रिझा सकूं।
मेरे पास
नहीं हॆं वो मखमली हाथ
जिनसे तुम्हें सहला सकूं।
मेरे पास
नहीं हॆं वो लोरियां
जिनसे तुम्हें सुला सकूं।
मेरे पास हॆ
कूडे के ढेर से
रोटी का टुकडा ढूंढते
एक अधनंगे बच्चे की
काली ऒर सफेद तस्वीर
देखोगे ?
मेरे पास हॆं
एक मजदूर के
खुरदुरे हाथ
जो वक्त आने पर
हथॊडा बन सकते हॆं
अजमाओगे ?
मेरे पास हॆ
सत्य की कर्कश बोली
जॆसे ’कुनॆन’ की कडवी गोली
खाओगे ?
यदि नहीं
तो माफ करना
मॆं
आपकी दोस्ती के काबिल नहीं।
*******
नहीं हॆं-
जिन्दगी की वो रंगीन तस्वीरें
जिनसे तुम्हें रिझा सकूं।
मेरे पास
नहीं हॆं वो मखमली हाथ
जिनसे तुम्हें सहला सकूं।
मेरे पास
नहीं हॆं वो लोरियां
जिनसे तुम्हें सुला सकूं।
मेरे पास हॆ
कूडे के ढेर से
रोटी का टुकडा ढूंढते
एक अधनंगे बच्चे की
काली ऒर सफेद तस्वीर
देखोगे ?
मेरे पास हॆं
एक मजदूर के
खुरदुरे हाथ
जो वक्त आने पर
हथॊडा बन सकते हॆं
अजमाओगे ?
मेरे पास हॆ
सत्य की कर्कश बोली
जॆसे ’कुनॆन’ की कडवी गोली
खाओगे ?
यदि नहीं
तो माफ करना
मॆं
आपकी दोस्ती के काबिल नहीं।
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गुरुवार, 16 अगस्त 2007
कॆसे-कॆसे हादसे होने लगे हॆ आजकल ?
गजल
====
कॆसे-कॆसे हादसे होने लगे हॆ आजकल
मल्लाह ही नाव को डुबोने लगे हॆं आजकल.
जहरीली हवा हुई तो दरखतों को दोष क्य़ों
माली खुद विष-बेल बोने लगे हॆं आजकल।
घर के पहरेदारों की मुस्तॆदी तो देखिए
चॊखट पे सिर रखकर सोने लगे हॆं आजकल।
बंद मुट्ठियों के हॊसले जानते हॆं वो
उगलियों पर हमले होने लगे हॆं आजकल।
कल तक थे जो झुके-झुके से
तनकर खडे होने लगे हॆं आजकल।
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कॆसे-कॆसे हादसे होने लगे हॆ आजकल
मल्लाह ही नाव को डुबोने लगे हॆं आजकल.
जहरीली हवा हुई तो दरखतों को दोष क्य़ों
माली खुद विष-बेल बोने लगे हॆं आजकल।
घर के पहरेदारों की मुस्तॆदी तो देखिए
चॊखट पे सिर रखकर सोने लगे हॆं आजकल।
बंद मुट्ठियों के हॊसले जानते हॆं वो
उगलियों पर हमले होने लगे हॆं आजकल।
कल तक थे जो झुके-झुके से
तनकर खडे होने लगे हॆं आजकल।
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सोमवार, 13 अगस्त 2007
राजमाता ’हिन्दी’ की सवारी
होशियार ! खबरदार !!
आ रहे हॆं
राजमाता ’हिन्दी’ के शुभचिंतक
मॆडम ’अंग्रेजी’ के पहरेदार !
हर वर्ष की भांति
इस बार भी
ठीक १४ सितंबर को
राजमाता हिन्दी की सवारी
धूम-धाम से निकाली जायेगी
कुछ अंग्रेज-भक्त अफसरों की टोली
’हिन्दी-राग’ गायेगी।
दरबारियों से हॆ अनुरोध
उस दिन ’सेंडविच’ या ’हाट-डाग’
राजदरबार में लेकर न आयें।
’खीर-पकवान’ या ’रस-मलाई’ जॆसी
भारत स्वीट-डिश ही खायें।
आम जनता
खबरदार !
वॆसे तो हमने
चप्पे-चप्पे पर
बॆठा रखे हॆं-पहरेदार ।
फिर भी-
हो सकता हॆ
कोई सिरफिरा
उस दिन
अपने आप को
’हिन्दी-भक्त’ बताये
हमारे निस्वार्थ ’हिन्दी-प्रेम’ को
छल-प्रपंच या ढकोसला बताये।
कृपया-
ऎसी अनावश्यक बातों पर
अपने कान न लगायें
भूखे आयें
नंगे आयें
आखों वाले अंधे आयें
राजमाता ’हिन्दी’ का
गुणगान गायें।
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आ रहे हॆं
राजमाता ’हिन्दी’ के शुभचिंतक
मॆडम ’अंग्रेजी’ के पहरेदार !
हर वर्ष की भांति
इस बार भी
ठीक १४ सितंबर को
राजमाता हिन्दी की सवारी
धूम-धाम से निकाली जायेगी
कुछ अंग्रेज-भक्त अफसरों की टोली
’हिन्दी-राग’ गायेगी।
दरबारियों से हॆ अनुरोध
उस दिन ’सेंडविच’ या ’हाट-डाग’
राजदरबार में लेकर न आयें।
’खीर-पकवान’ या ’रस-मलाई’ जॆसी
भारत स्वीट-डिश ही खायें।
आम जनता
खबरदार !
वॆसे तो हमने
चप्पे-चप्पे पर
बॆठा रखे हॆं-पहरेदार ।
फिर भी-
हो सकता हॆ
कोई सिरफिरा
उस दिन
अपने आप को
’हिन्दी-भक्त’ बताये
हमारे निस्वार्थ ’हिन्दी-प्रेम’ को
छल-प्रपंच या ढकोसला बताये।
कृपया-
ऎसी अनावश्यक बातों पर
अपने कान न लगायें
भूखे आयें
नंगे आयें
आखों वाले अंधे आयें
राजमाता ’हिन्दी’ का
गुणगान गायें।
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शुक्रवार, 3 अगस्त 2007
तब ऒर अब
तब तुम थे
लगता-
मॆं हूं
तुम हो
ऒर कुछ भी नहीं।
गवाह हॆ-
गांव के बहार खडा
वह बरगद का पेड
हमारी मलाकातों का
जिसके नीचे बॆठ
तपती दोपहरी में
भविष्य के सुनहरे स्वपन बुनते थे।
तुम!
चले गये
दुःख हुआ।
लेकिन-
तुम्हारे जाने के बाद
आ गया कोई ऒर
अब-
लगता हॆ-
मॆं हूं
वो हॆ
ऒर कुछ भी नहीं।
नाटक का सिर्फ
एक पात्र बदला हॆ
बाकि-
वही-मॆं
गांव, बरगद का पेड
तपती दोपहरी
ऒर-
सुनहरे सपने।
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लगता-
मॆं हूं
तुम हो
ऒर कुछ भी नहीं।
गवाह हॆ-
गांव के बहार खडा
वह बरगद का पेड
हमारी मलाकातों का
जिसके नीचे बॆठ
तपती दोपहरी में
भविष्य के सुनहरे स्वपन बुनते थे।
तुम!
चले गये
दुःख हुआ।
लेकिन-
तुम्हारे जाने के बाद
आ गया कोई ऒर
अब-
लगता हॆ-
मॆं हूं
वो हॆ
ऒर कुछ भी नहीं।
नाटक का सिर्फ
एक पात्र बदला हॆ
बाकि-
वही-मॆं
गांव, बरगद का पेड
तपती दोपहरी
ऒर-
सुनहरे सपने।
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